" हर कोई अपनी जिन्दगी के तमाम मुकाम तय करता है। हर प्रत्येक मुकाम उसे कुछ न कुछ ऊंचाई दे कर जाते है, पर ऐसा भी होता है, कि हम अपने आपको उस मुकाम पर पाते है, कि ख़ुशी या ग़म सब अपने इख्तियार से बाहर नज़र आता है । क्या ये हमारी आदमियत कि सीमाये है, या ईश्वर का दिशा-निर्देश कि, बस यही तक, यही तक हमारा बस है, हम पर । वक़्त रुकता नही और हम भी वक़्त के साथ पल -प्रतिपल बदलते रहते है । यह स्वीकार करना ही चाहिऐ कि वक़्त और व्यक्ति दोनो बदलते रहते है। हां ये अलग बात है कि आदमी का बदलना ज्यादा कष्ट देता है । "
3 comments:
saty wachan .badlaw to prakarti ka niyam hai ..magr tum mat badalna tum aisi hi acchi ho
badlaw accha ho toh sab ussey asani se swikaar kar lete hain.........but badlaw humesha accha ho yeh bhi jaroori nahi.........
इतना सुंदर ब्लॉग
इतने सहज ज़ज्बात
प्रीति आपको होगा याद
एक पोस्ट जो हमने भी आपके
भेजे एक चित्र पर तैयार की थी
आपका ब्लॉग जगत में शुभागमन मेरा स्वपन पूर्ण हुआ
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