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You’ll find positive, Motivational thoughts... In poetry few are written by Me n others too & Some r Translated also. I feel that thoughts heighten the awareness of our feelings & world around us.

ऋणानुबंधन ...












तुझसे लफ्जो का नहीं रूह का रिश्ता है मेरा, मेरी सांसो में बसी रहती है खुश्बू तेरी ...


हर बात में महकते एहसासों की खुशबु ,
याद आई वो पहली मुलाक़ात की खुशबु ...
रिश्ते की रचना ने रिश्ता बनाया ,
बिछड़े थे बरसो से जो, उसे है मिलवाया ....


कभी कभी कुछ क्षण का परिचय कुछ ख़ास बन जाता है, और ऐसे संबंध जो ना समझ आये या कह लो जिसका ताल मेल बुद्धि से भी ना मिल पाए, ऐसा बंधन, एक अटूट "ऋणानुबंधन", और यह बंधन कब, क्यों, कैसे - किसी से बन जाता है यह समझ ही नहीं आता ... बस बन जाता है ...


दिल के दरवाजे से निकला ये अनोखा बंधन ,
दिल की धड़कन बन धड़कता ये अनोखा बंधन ,
प्रेम के धागों से बुना ये अनोखा बंधन ,
प्यारे से रिश्तो से गुथा ये अनोखा बंधन ,
ममता से हरा-भरा ये अनोखा बंधन ,
सूत के धागों सा अटूट ये अनोखा बंधन ,
नदी की पानी सा बहता ये अनोखा बंधन ,
दिये की लौ सा प्रकाशित ये अनोखा बंधन ,
बरसात सा स्नेह का झरता ये अनोखा बंधन ,
चांदनी सा शीतल है ये अनोखा बंधन ,
फूलो सा कोमल है ये अनोखा बंधन ,
तेरा और मेरा, अजब सा ये अनोखा बंधन ......


अनोखा बंधन ... कितना सुन्दर और पवित्र नाम ? सुन कर ही कुछ अलौकिक अनुभूति का एहसास हो जाता है. जैसे पूर्व-जन्म का कोई बंधन ? जो युग-युग से जनम लेकर एक हृदय को हृदय से जोड़ रहा हो ..? जो निर्दोष, निस्वार्थ प्रेम भाव का झरना बन अविरत बहता रहता है .. और यह एहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है किसी शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, जो सामाजिक और खून के रिश्तो से परे है और कुछ अलौकिक और अनोखा बंधन है ...













दुनिया कहती है उन्हें की उन्होंने मुझे जन्म नहीं दिया,
पर - ' माँ ' तो वही है …..
मेरे दर्द की भावनाओ को पल - प्रतिपल भोगा है,
मेरी जिंदगी को कुछ मायने दिए,
एक राह दी,
एक चाह दी,
हर पल यह एहसास दिया की साथ हूँ मैं तेरे ,
तो - ' माँ ' तो वही है न्…..!


अविरत, अविरल, अदृश्य यह एहसास आपका ,
स्नेह, प्रेम और अप्रतिम यह दुलार आपका ...

बहुत खोया – बहुत कुछ पाया भी आपसे ,
अजमाया जिंदगी ने, जिंदगी से मिलवाया आपने ...

कृष्ण ने जो यशोदा में, कर्ण ने जो राधा में ,
वही रूप नज़र आता है मुझे आप् में ...!

27 comments:

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

बहुत खूबसूरत है रिश्ता तुम्हारा.....
माँ ने जिसे प्यार से है संवारा .....

सुन्दर अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति..........

प्यार और शुभकामनायें.........

रश्मि प्रभा... said...

yah rishta ishwariye hai......iski anubhutiyaan,iski dastakn,iska maun ......sabse judaa hain

Mahfooz Ali said...

di........ aapki yeh kavita dil ko chhoo hayi....bahut behtareen abhivyakti saath ...bahut sunder kavita...

badhai...


www.lekhnee.blogspot.com

डॉ. जय प्रकाश गुप्त said...

संबन्धों का अनुभव ही अनुभूति अटल बन जाता है, रक्त-मांस का संबन्धों की गरिमा से क्या नाता है....?
अत्यन्त भावपूर्ण सत्यानुभूति युक्त रचना, बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut pyaar se is bandhan ko bandha hai......khoobsurat srijan...badhai

vandana gupta said...

ye bandhan sare bandhnon ke upar hota hai...........is rishte si garima ,niswarth prem aur kahan milega.

bahut hi sundar shabdo mein piroya hai.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कृष्ण ने जो यशोदा में, कर्ण ने जो राधा में ,
वही रूप नज़र आता है मुझे आप् में ...!
बहुत सुंदर भावों को अभिव्यक्ति एक सरल-सरल प्रवाह के साथ प्रवाहित हो रही है। आभार

संत शर्मा said...

Manobhawo ki sundar avivyaqti.

दिपाली "आब" said...

too good preeti di.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह बहुत अच्छी रचना है।
बधाई और साधुवाद!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

preeti,
kavita to behad bhaawpurn hai hin, ye shabd man ke bahut kareeb lage, kitna sahi kaha hai aapne...
ऐसे संबंध जो ना समझ आये या कह लो जिसका ताल मेल बुद्धि से भी ना मिल पाए, ऐसा बंधन, एक अटूट "ऋणानुबंधन", और यह बंधन कब, क्यों, कैसे - किसी से बन जाता है यह समझ ही नहीं आता ... बस बन जाता है ...
bahut bahut badhai.

बाल भवन जबलपुर said...

आपका आलेख चिंतन का अमृत है
बधाइयाँ

बाल भवन जबलपुर said...

is hetu adhik sadhuvad
अविरत, अविरल, अदृश्य यह एहसास आपका ,
स्नेह, प्रेम और अप्रतिम यह दुलार आपका ...

बहुत खोया – बहुत कुछ पाया भी आपसे ,
अजमाया जिंदगी ने, जिंदगी से मिलवाया आपने ...

कृष्ण ने जो यशोदा में, कर्ण ने जो राधा में ,
वही रूप नज़र आता है मुझे आप् में ...!

Unknown said...

दिल की गहराई से निकले भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति को पढ़ कर मन को जो सुकून मिला उसके लिए धन्यवाद
डॉ. कमल हेतावल
kamalhetawal@yahoo.co.in
kamalhetawal@gmail.com

RAMKRISH said...

दिल के दरवाजे से निकला ये अनोखा बंधन ,
bahut sunder kavitayen hain Ji

----
Zazbaato ko yun goondh dya alfazon me
K Haz lafz se khusbu k jhonke Mehka gaye dil ka aangan|

मुकेश कुमार सिन्हा said...

aise anokhe bandhan aap jaise log hi jod sakte hain......aur jo sirf likhte nahi hain...balki apne dilo me sanjo kar bhi rakhte hain....

bahut bhi bhawpurn abhivyakti....

hats off preeeti......!!
meri subhkamnayen aapke saath hai!!

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bhaut khub rachna
bahut -2 abhar

Unknown said...

bahut badhiya rishta hai. bhav unnat aur kalpana khoobsurat, badhai.

शेरघाटी said...

pahli chaar panktiyaan bahut hi sundar!

aur iski sundarta ismein samaahit iski arth-gambheerta jo marm ko bhee haule-hule na sirf sahlaane balki bhedne ka bhi kaam karti hai.

is blog ke kai post ko na sirf padhne apitu manan kar bat karne ki zarurat hai, samay mila to zarur karunga.

Unknown said...

APNE AAP MAI HAR RISHTA MAHATV RAKHTA HAI ...PAR JAB KOI RISHTA HAM KHUD BANATE HAI AUR USE USI GAHRAI AUR GARIMA PURAN TARIKE SE NIBHATE HAI TO USS RISHTE KI BAT HI KUCH AUR HOTI HAI..
HAMARI RUH KO ZINDAGI DETI HAI .
BAHUT ACHHE SE ABHIWYAKT KIYA TUMNE KYOKI DIL SE MAHSUS KIYA TUMNE

खोरेन्द्र said...

haa yah sach hain

kuchh rishtey aese hote hain ...

jinhe naam nahin de paate ham .....

tab main kahataa hun ..

agale janm me mujhe tum apanii kokh se janm dena

haa kuchh ishte khushbu kii tarah
sanso me samaaye rahate hain

tab main kahata hun

dost mujhe tum mere marane ke baad

svrg ke kisi chauraahe par mil jaanaa

kuchh rishte rakt se banate hain

aur kuchh shbd se

bina rishto ke jiivan sunaa hain ...


bahut khub preetii

kishor

सदा said...

कृष्ण ने जो यशोदा में, कर्ण ने जो राधा में ,
वही रूप नज़र आता है मुझे आप् में ...!

बहुत ही भावमय करते शब्‍द हैं इस रचना के और आपकी यह प्रस्‍तुति नि:शब्‍द करती हुई ...बधाई इस अनुपम प्रस्‍तुति के लिये ।

विभा रानी श्रीवास्तव said...

कृष्ण ने जो यशोदा में, कर्ण ने जो राधा में ,
वही रूप नज़र आता है मुझे आप् में.... !

सभी दुनियावाले ,

जन्म देने से ज्यादा ,

पालने वाली का महत्व देते है ,

इसलिए आपका देना स्वाभाविक लगा.... !!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर!

सादर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खुबसूरत अभिव्यक्ति...

Madhuresh said...

बहुत प्यारी रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत भाव लिए अच्छी प्रस्तुति