You have entered the world of InnerSoul …!


You’ll find positive, Motivational thoughts... In poetry few are written by Me n others too & Some r Translated also. I feel that thoughts heighten the awareness of our feelings & world around us.

कैसे मिलूंगी ..?

यह पोस्टिंग पढने के लीये "design" पर क्लिक करें ...!

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ,जो बौरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ....
कैसे मिलूंगी....और साम्यता रखती तस्वीरें......तुम्हारा जवाब नहीं

નીતા કોટેચા said...

बहोत बढ़िया जी....

anita agarwal said...

"अपने अहम् में ढूंढोगे तो कैसे मिलूंगी
कांच के शहर में ढूंढोगे तो कैसे मिलूंगी "
बहुत सुंदर बात कही है ...अगर ढूंढ़ना है तो पहले अहम् को नष्ट कर दो ...आत्मासात कर लो ..फिर तो ढूंढ़ना ही नहीं पड़ेगा ......
"जल हूँ, ओस हूँ , बादल हूँ ...मृगतृष्णा सी प्यास हूँ ....तृप्त शहर में जो ढूंढोगे तो कैसे मिलूंगी"
ये पंक्तियाँ भी बहुत सुंदर बन पड़ी हैं .........

vimmi said...

la javab...

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

मैं तुम्हारे पास हूँ ,
क्यों ढूंढते हो तुम मुझे ,
प्यार के एहसास में लिपटी मिलूंगी
खुशबू बन साँसों में घुलूंगी .......

बहुत सुन्दर चित्र संयोजन ......
प्यार के साथ ...

life is beautiful said...

बहुत ही उचित सोच ही........अगर यूँ ही कहीं भी ढूंढो तो कुछ नहीं मिलता...और अगर अपने पास महसूस करो तो सब आस पास ही मिल जाता है...
तुम्हारी प्रस्तुति अत्यंत मनमोहक है...और तुम्हारी सृजनात्मकता को दर्शाता है...

M.L.Sharma said...

बहुत सुन्दर कविता और बेक ग्राउंड है लेकिन खोजने वाला
भी बुरा होता है वह खोजकर ही रहता है बहुत बहुत बधाई

Unknown said...

बहुत ही खूबसूरत एहसास....सुन्दर अभिव्यक्ति..... तस्वीरो का संयोजन बेहतरीन...बधाई

NIVIA NEELIMA said...

bahut hi khubsuratbhavaabhivyakti hai aapki .......n prentation to bahut hi uttam .kaise kar leti hai aap y sab .............. hame bhi sikhayegi aap? HAVE A LOOK ON MY BLOG http://thoughtpari.blogspot.com/

anubhooti said...

व्यक्त भावनाएं सुंदर हैं , शब्द संयोजन भी ठीक है, एक और अच्छा प्रयास .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

ब्लाग पर इतने सुन्दर शब्द
कभी-कभी ही पढ़ने को मिलते हैं।
धारदार कविता के लिए,
बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

विचारों में रवानी है,
कहानी में कहानी है।
छिपी है वेदना कोई,
उसी की ये निशानी है।

वक्त चलाता खंजर देखा,
दर्द भरा इक मंजर देखा।
फिर भी आशा बची हुई है,
आखों में छवि रची हुई है।

Unknown said...

"अपने अहम् में ढूंढोगे तो कैसे मिलूंगी
कांच के शहर में ढूंढोगे तो कैसे मिलूंगी "

Its an awesome rachna, simply superb...